अधिक मास, जिसे भारतीय पंचांग में "मल मास" या "पुरुषोत्तम मास" के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू पंचांग में एक अतिरिक्त चंद्र मास है। यह लगभग हर तीन वर्ष में एक बार होता है ताकि चंद्र मास को उर्जा सूर्य मास के साथ समकक्ष बनाने के लिए जोड़ा जा सके।
हिन्दू पंचांग में चंद्र मास का आधार चंद्रमा की चक्रवात आधारित होता है, जो लगभग 29.5 दिनों का होता है। हालांकि, सौर वर्ष का आयाम लगभग 365.25 दिनों का होता है। दोनों पंचांगों को समायोजित करने के लिए, चंद्र मास में नियमित अंतराल पर एक अतिरिक्त मास जोड़ा जाता है।
यह अतिरिक्त मास लगभग 29.5 दिनों का होता है और यह इस्लामी तिथि आधारित कलेण्डर के मुताबिक बदलता रहता है। अधिक मास का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि वह सूर्य के साथ चंद्र मास को अंतर्वस्त्र रूप में रखने के लिए जोड़ा जाता है, जिससे पंचांग में दोनों का मेल हो सके। इसे सामान्य चंद्र मासों के बाद जोड़ा जाता है और अधिक मास के बाद सूर्य मास शुरू होता है।
अधिक मास के बारे में कई पुराणों और लोककथाओं में कहानियां भी हैं। इनमें से एक कथा विष्णु पुराण में वर्णित है, जहां भगवान विष्णु ने चंद्रमा के द्वारा धरती को उद्धार किया था। चंद्रमा के प्रमाणित नक्षत्रों में एक मुर्गा और गज की उत्पत्ति हुई, जिसके द्वारा वह उन्मादित हो गया था। उसने महाराज दशरथ की गर्भवती महिला के रूप में रानी कौशल्या के गर्भ में प्रवेश किया, जिससे प्रभु राम का अवतार हुआ।
अधिक मास को भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मान्यता है कि इस मास में धर्मिक और आध्यात्मिक कार्यों का विशेष महत्व होता है। अधिक मास को भगवान विष्णु का अर्पण माना जाता है और इसे प्रयाग मेला जैसे पुण्य क्षेत्रों में आस्थानिक मान्यताओं के साथ मनाया जाता है।
धार्मिक दृष्टि से देखें तो, अधिक मास में व्रत, पूजा, पाठ और दान करने का विशेष महत्व होता है। इस मास में ज्योतिष और तांत्रिक आध्यात्मिक अभ्यास के लिए भी विशेष योग्यता मानी जाती है। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया का समय होता है, जब मानव अपने आपको ध्यान में रखकर अपने आंतरिक विकास को संवार सकता है।
इसके अलावा, अधिक मास में धर्मिक और सामाजिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। लोग संगठनों द्वारा विविध धार्मिक कार्यक्रम, कीर्तन, भजन सभा, विशेष उपवास, सत्संग और प्रवचन आयोजित करते हैं। यह मास मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से लोगों को बदलने और सकारात्मक रूप से उनके आसपास की दुनिया में प्रभाव डालने का एक अच्छा समय माना जाता है।
यह मान्यता भी है कि अधिक मास में दान करने का अधिक फल मिलता है। लोग दान और चारित्रिक सेवा का महत्वपूर्ण समय मानते हैं और दान द्वारा अपने आसपास के लोगों की सेवा करने का प्रयास करते हैं।
अधिक मास को भारतीय संस्कृति में एक विशेषता के रूप में मान्यता दी जाती है, और इसे बहुत सम्मानित किया जाता है। इस मास को विशेष ध्यान और समर्पण के साथ मनाने से मानव अपनी आध्यात्मिक और मानविक प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रह सकता है। यह मास सामरिक और उद्धारक उद्देश्य के साथ आता है और इसे उच्चतम आदर्शों और मूल्यों के अनुरूप जीने का अवसर प्रदान करता है।
इस प्रकार, अधिक मास हिन्दू पंचांग में एक महत्वपूर्ण और आदर्श समय के रूप में मान्यता प्राप्त करता है। यह मास धर्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए एक विशेष अवसर प्रदान करता है और लोगों को सामरिक, मानविक और आध्यात्मिक रूप से उनके आसपास के सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का मौका देता है। इसे मान्यता देने वाले लोग अपने धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करते हैं और यहां तक कि इस समय में दान, पूजा, पाठ, व्रत आदि करके स्वयं का और अपने आसपास के लोगों का उन्नयन करने का प्रयास करते हैं।
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