ईद ए मुबाहिला क्या है? (Eid e Mubahila Kya Hai)

ईद ए मुबाहिला क्या है? (Eid e Mubahila Kya Hai)
Posted on 12-07-2023

ईद ए मुबाहिला क्या है? (Eid e Mubahila Kya Hai)

ईद-ए-मुबाहिला एक मुहिम है जो इस्लामी इतिहास में महत्वपूर्ण घटना है। इस मुहिम का आयोजन मुस्लिम समुदाय के लिए प्राथमिकतापूर्वक किया जाता है और इसका मकसद है कि अखबारी और नजरिया अलीगढ़ मुक़बिला करें और जिन्होंने जो वाद किया है, उन पर ईश्वर का आज्ञान प्राप्त करें। इस लेख में हम ईद-ए-मुबाहिला के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, इसके महत्व को समझेंगे और इसके पीछे के ऐतिहासिक परिस्थितियों को समझेंगे।

 

ईद-ए-मुबाहिला का इतिहास:

ईद-ए-मुबाहिला की घटना इस्लामी तारीख के अनुसार 10 हिजरी में घटी थी। इस घटना का सम्बंध इस्लामी व्यक्तित्वों, जैसे कि नबी मुहम्मद (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम), अली बिन अबी तालिब (रदय अल्लाहु तआला अन्ह), फातिमा बिन्त मुहम्मद (रदय अल्लाहु तआला अन्ह), हसन बिन अली (रदय अल्लाहु तआला अन्ह) और हुसैन बिन अली (रदय अल्लाहु तआला अन्ह) के साथ है।

 

ईद-ए-मुबाहिला का मकसद:

ईद-ए-मुबाहिला का मकसद था कि दो विरोधी पक्षों के बीच एक मुकाबला आयोजित किया जाए, जहां दोनों पक्ष अल्लाह के आज्ञान को हासिल करने के लिए मुकाबला करेंगे। इस मुकाबले में, जीतने वाला पक्ष दोषी पक्ष के लिए दुआ कर सकेगा और हारने वाला पक्ष समर्पण करेगा और तालीम प्राप्त करेगा। ईद-ए-मुबाहिला एक मानवीय अदालत की तरह थी, जहां दो पक्षों के बीच मामलों के निर्णय पर न्यायिक तंत्र काम करता था।

 

ईद-ए-मुबाहिला की घटना:

ईद-ए-मुबाहिला की घटना बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसके पीछे कई ऐतिहासिक परिस्थितियाँ हैं। इसका संबंध ख़ुदा के द्वारा अहल-ए-बैत (नबी मुहम्मद की फ़ैमिली) के और मुहम्मद (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बीच हुए एक मुकाबले से है।

मुहम्मद (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद हज़रत अली (रदय अल्लाहु तआला अन्ह) को ख़ुदा द्वारा आल-ए-मुहम्मद (नबी मुहम्मद की वंशज) का प्रतिष्ठान दिया गया था। हज़रत अली को ख़ुदा ने एक वारिस और ईस्लाम के मार्गदर्शक के रूप में चुना था। इसके बावजूद, कुछ लोगों ने अपनी ख़ुदाई और बातिली आवाज़ के कारण ख़ुदा के आदेश का उल्लंघन किया और अपनी ख़ुदाई को ताकतवर बनाने का प्रयास किया।

नबी मुहम्मद और हज़रत अली के बीच में स्नेहपूर्ण संबंध थे और वे आपस में बहुत गहरे रिश्ते में थे। हज़रत अली ने इस्लाम के लिए अपने सब कुछ त्यागा था और वे नबी मुहम्मद की मदद करने में हमेशा तत्पर रहे थे। इसके बावजूद, कुछ लोगों ने हज़रत अली को पहचान नहीं और उन्हें नबी मुहम्मद के जैसा स्थान पर रखने के लिए आपत्ति रखी।

मुहम्मद (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने देखा कि उनके नजदीकी लोग उनके संघर्षों का फ़ायदा उठा रहे हैं और अपने अंदर असंख्य व्यापारिक और राजनीतिक हितों को संभाल रहे हैं। इसलिए, उन्होंने अहल-ए-बैत को एकता और सामरिक जुटाव की आवश्यकता को समझाया।

ईद-ए-मुबाहिला की घटना 24 जमादी उल आखिर, 10 हिजरी को अय्यामुल जाहिलियात (जाहिलियात के दिन) के दिन हुई। इस मुकाबले को साथ लेने के लिए नबी मुहम्मद और अहल-ए-बैत, जिनमें हज़रत अली, फ़ातिमा, हज़रत हसन और हज़रत हुसैन शामिल थे, घार-ए-सौबा नामक स्थान पर उपस्थित हुए।

ईद-ए-मुबाहिला के दौरान नबी मुहम्मद (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने एक प्रार्थना की और अली, फ़ातिमा, हसन और हुसैन को अपने साथ लाए और उन्होंने खुदा के आज्ञान की शपथ ली। उन्होंने कहा, "अगर आपका सच्चाई का वचन है और आपका सच्चाई का वचन हमारे साथ है, तो हम दुआ करते हैं कि आप हमारे विरोधी को वह सजा दें जो आप उसे देना चाहते हैं।"

नबी मुहम्मद की प्रार्थना के बाद एक अजानबी आदमी उनके सामने आया और कहा, "अल्लाह ने मेरे द्वारा आपकी दुआ स्वीकार कर ली है।" यह व्यक्ति अली बिन अबी तालिब (रदय अल्लाहु तआला अन्ह) थे, जिन्होंने ख़ुदा द्वारा प्रतिष्ठापन का आदेश प्राप्त किया था।

इसके बाद, नबी मुहम्मद, अली, फ़ातिमा, हसन और हुसैन ने एक समझौता किया कि वे अल्लाह के द्वारा चुने गए अदालत में अपने मुकाबले के लिए जाएंगे। इस मुकाबले के नियमों के अनुसार, दो पक्षों को आपस में मिलकर अपने वचन और दुआएं बदलनी थीं। जो पक्ष पहले जीतता, वह दुआ को प्राप्त करता।

ईद-ए-मुबाहिला के बाद, नबी मुहम्मद ने हज़रत अली को अपने साथ बुख़ारी के घर पर बुलाया और उन्होंने उन्हें सब कुछ संबोधित किया और उन्हें अपने साथ अपने जन्नती अधिकारी बनाया। उन्होंने कहा, "अली, तुम मेरा भाई, मेरा वरिस और मेरा कलीसियों का साथी हो।"

 

ईद-ए-मुबाहिला का महत्व:

ईद-ए-मुबाहिला का महत्व ईसाई और मुस्लिम समुदायों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक मानवीय मुकाबला है जो विचारों, मतभेदों और संघर्षों को समझने और समाधान करने की प्रेरणा देता है। इसे अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं और विवादों को सुलझाने का एक मार्गदर्शन माना जाता है।

ईद-ए-मुबाहिला के द्वारा, अहल-ए-बैत को अपने वचन और दुआओं को महत्वपूर्ण बनाने का एक संदेश मिलता है। यह उन्हें स्वयं को समर्पित करने, अपने मूल्यों और सिद्धांतों के लिए लड़ने, और अल्लाह की इच्छा के अनुसार जीने के लिए प्रेरित करता है।

ईद-ए-मुबाहिला की याद में, मुस्लिम समुदाय के लोग मुस्लिम इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाओं को याद करते हैं और इसे एक स्वर्णिम अवसर मानते हैं। इस दिन, लोग आपस में एक-दूसरे के लिए दुआएं करते हैं और एक-दूसरे की भलाई और समृद्धि की कामना करते हैं।

ईद-ए-मुबाहिला को उद्घाटन करने के बाद से, इसे मुस्लिम समुदाय में हर साल मनाया जाता है। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें लोग मिलते हैं, खुशी मनाते हैं और एक-दूसरे के साथ प्यार और सम्मान के भाव का अभिव्यक्ति करते हैं।

इसके अलावा, ईद-ए-मुबाहिला मुस्लिम समुदाय को यह समझने की प्रेरणा देता है कि उन्हें संघर्षों, विवादों और अन्य मुद्दों को संभालने का तरीका सिखाना चाहिए। यह उन्हें धैर्य, समर्पण, विवेकपूर्ण निर्णय और ईमानदारी के महत्व को समझाता है।

ईद-ए-मुबाहिला आज भी मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जो उन्हें उनके मूल्यों और धार्मिक आदर्शों के बारे में स्मरण दिलाता है। यह उन्हें एक-दूसरे के साथ प्यार, समर्पण और सहयोग के भाव का अनुभव करने के लिए प्रेरित करता है।

इस प्रकार, ईद-ए-मुबाहिला मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण और गौरवशाली घटना है जो अल्लाह के आदेश को स्मरण रखती है और उन्हें उनके धार्मिक मूल्यों और अदालत की महत्वपूर्णता को याद दिलाती है। इसके माध्यम से, ईसाई और मुस्लिम समुदाय को एक साथ आत्मीयता और समरसता की भावना को बढ़ावा दिया जा सकता है और सभी लोग एक साथ अपने मूल्यों के आधार पर जीने के लिए प्रेरित किए जा सकते हैं।

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