नवीद अख़्तर ने समूँदरी पाकिस्तान से प्रशन पूछा है,
अससलम ओ अलैकुम
जब हज़रत मुहम्मद की नाभि शक्ति
पवित्र हो गई,
वो मनुष्य से दिव्या प्रकाश बन गाय.
तो फिर मृत्यु किस चीज़ को आई?
क्योंके दिव्या प्रकाश की मृत्यु नहि हो सकती.
मेरा अगला प्रशन है के जब ऐक आम व्यक्ति की
नाभि शक्ति पवित्र हो जाती है, तो वो भी दिव्या प्रकाश
बन जाता है ?
दिव्या प्रकाश बन जाता है क्या?
व्यक्ति जो है
वो
अलग अलग चीज़ों का मेल है.
यौजिक जंतु है.
जिस मैं
मिट्टी का शरीर भी है.
जिस मैं
मांस है, हड्डियाँ हैं, रक्त बहता है.
और उस शरीर मैं,
अदृश्य
आत्माइएँ भी हैं जो दिखाई नहि देतीं.
उसी प्रकार,
जो दिव्या प्रकाश है,
उस के बारे मैं भी
ग़लत
विचार बनाए हुवे हैं मुसलमानों ने.
वो समझते हैं के दिव्या प्रकाश (नूर) इक रोशन चीज़ है.
कहीं कहीं पर
दिव्या प्रकाश को रोशनी के रूपक
उपयोग किया गया है.
परंतु अगर आप केविल दिव्या प्रकाश के अपने बारे बात करें.
तो दिव्या प्रकाश दिखाई देने वली
चीज़ नहि है.
दिव्या प्रकाश
उदाहरण के लिए जेसे बिजली है.
बिजली से
गाड़ियाँ भी चल रही हैं.
मशीनें भी चल रही हैं.
और बिजली से बल्ब भी रोशन हो रहे हैं.
अगर बिजली रोशनी होती.
तो मशीन से रोशनी नहि निकलती?
निकलती नॉ?
रोशनी बल्ब से निकल रही है.
तार मैं से जब बिजली गुज़रती ह, तो दिखाई देती है?
उस प्रकार, दिव्या प्रकाश भी दिखाई नहि देता कीयों
के ये दिव्या ऊर्जा है, ये ऊर्जा है.
दिव्या ऊर्जा.
दिव्या ऊर्जा है ये.
जब क्लब (आध्यात्मिक हिर्दय) मैं अल्लाह के नाम का सिमरन होता है तो,
उस से दिव्या प्रकाश बन्नता है.
और वो मनुष्य की आत्माओं मैं जाता है.
और मनुष्य की आत्मा
दिव्या प्रकाश के ऊर्जा से जगुर्त होती है.
अब वो दिव्या प्रकाश उस की नसों मैं भाग रहा है.
अब उसको साहिब ए नूर कहें गे.
ऐसा मनुष्य जिस मैं
वो ऊर्जा भाग रहा है
जो के भगवान की ओर से आई है.
समझ गाये आप?
और उस ऊर्जा का गोदाम
कहाँ पर है? मनुष्य के शरीर मैं भागता है
दिव्या प्रकाश.
परंतु उस का जो गोदाम है,
जहाँ दिव्या प्रकाश अकतरित होता है.
वो मनुष्य का दिल है आध्यात्मिक हिर्दय है
और उस की आत्माइएँ हैं.
जब मनुष्य की नाभि शक्ति
मैं दिव्या प्रकाश आता है.और नाभि शक्ति पवित्र हो जाती है.
तो उस मैं दिव्या गुण का प्रदर्शन होता है.
और दुष्ट गुण निकल जाते हैं.
परंतु उस दिव्या प्रकाश का गोदाम
मनुष्य के भीतर आत्माइएँ हैं.
जब मनुष्य की मृतु होती है,
तो वो सारा दिव्या प्रकाश जो आत्माओं मैं है,
दिव्या प्रकाश और आत्मा दोनो ऊपर चले जाते हैं.
और शरीर खली रह जाता है.
दिव्या प्रकाश की मृतु तो नहि होती, परंतु दिव्या प्रकाश शरीर मैं
रहता थोड़ी है.
जब हम कहते हैं के दिव्या प्रकाश बन गया तो इस का मतलब है के
साहिब ए नूर हो गया.
वो शरीर रह गया और दिव्या प्रकाश आत्माओं के साथ
ऊपर चला गया.
ये है दिव्या प्रकाश का ख़ुलासा.
Thank You