तेरुकुलु कहाँ का पौराणिक नाट्य है?

तेरुकुलु कहाँ का पौराणिक नाट्य है?
Posted on 05-07-2023

तेरुकुलु कहाँ का पौराणिक नाट्य है?

तेरुकुलु (Terukkuttu) पौराणिक नाट्य (theatrical performance) तमिलनाडु, भारत का एक प्रमुख रंगमंचीय कला रूप है। यह तमिल भाषा में प्रदर्शित होता है और इसकी विशेषता तमिलनाडु की सांस्कृतिक और कला परंपराओं में सुलभता के लिए विख्यात है। तेरुकुलु एक प्राचीन नाट्य परंपरा है जिसमें पौराणिक कथाओं, इतिहास, और तमिल साहित्यिक काव्यांशों की कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं। इसका इतिहास संप्रदाय से प्राप्त होता है और इसकी प्रस्तुति मुख्य रूप से गांवों और क्षेत्रीय समुदायों में होती है।

तेरुकुलु शब्द "तेरु" और "कुलु" से मिलकर बना है। "तेरु" तमिल भाषा में "ग्राम" को दर्शाता है, जबकि "कुलु" ग्रामीण समुदाय या समुदाय को दर्शाता है। इस प्रकार, तेरुकुलु शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "ग्रामीण समुदाय का नाट्य"। यह प्रदर्शन रंगमंच पर होता है और विभिन्न कलाओं का सम्मिलन होता है, जैसे कि नृत्य, गीत, संगीत, वाद्ययंत्र, भण्ड, नट, और वचन। तेरुकुलु में एक शो आमतौर पर पूरे दिन या रात तक चलता है और इसमें कलाकारों को उच्च कौशल के साथ प्रदर्शन करना पड़ता है।

तेरुकुलु की प्रस्तुति का मूल उद्देश्य तमिल साहित्यिक और पौराणिक कथाओं की प्रस्तुति करके जनमानस को मनोरंजन और शिक्षा दोनों प्रदान करना है। इसका प्रदर्शन विशेष तरीके से करता है जो तमिलनाडु की सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधताओं को प्रकट करता है। तेरुकुलु का महत्वपूर्ण स्थान तमिलनाडु की साहित्यिक और कला परंपराओं में है, और इसे प्रामाणिक तमिलनाडु की परंपरागत प्रस्तुतियों का हिस्सा माना जाता है।

तेरुकुलु का इतिहास बहुत पुराना है और यह तमिलनाडु की सांस्कृतिक और कला परंपराओं के साथ संबद्ध है। इसकी मूल उत्पत्ति ग्रामीण क्षेत्रों में हुई है, जहां लोग इन प्रस्तुतियों के माध्यम से अपनी साम्राज्यिक और धार्मिक कथाओं को साझा करते थे। इन कथाओं का मुख्य उद्देश्य जनमानस को शिक्षा और मनोरंजन प्रदान करना था। यह परंपरा समुदायों और जनसंघों के आयोजन के रूप में बड़े पैमाने पर होती थी और इसे समुदाय की सामूहिक आदतों और नीतियों का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था।

तेरुकुलु के प्रमुख पात्र पौराणिक कथाओं के चरित्र होते हैं। इनमें हिंदू पौराणिक कथाओं के चरित्र, जैसे रामायण, महाभारत, भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा, और अन्य देवताओं के चरित्र शामिल होते हैं। ये प्रस्तुतियाँ धार्मिक और मोरली शिक्षाओं को समावेश करती हैं और जनमानस को उन्नति की ओर प्रेरित करती हैं।

तेरुकुलु की प्रदर्शन परंपरा में, अभिनेता जो स्थानीय समुदाय का हिस्सा होता है, साधारणतया ग्राम के प्रमुख आदमी होता है। यह व्यक्ति उपन्यास और कथानक प्रवचन करके कहानी को प्रस्तुत करता है, जबकि अन्य कलाकार उस कथा को नृत्य, गान, संगीत और वाद्ययंत्र के माध्यम से समृद्ध करते हैं। तेरुकुलु की प्रस्तुति में प्रमुखता संगीत और नृत्य की होती है।

तेरुकुलु के प्रमुख पात्रों का शोध, उद्योग और प्रशिक्षण एक लम्बे कार्यक्रम का हिस्सा होता है। कलाकार वर्ग के सदस्यों को एकांत में शिक्षा दी जाती है, जिसमें उन्हें नृत्य, गायन, संगीत, वाद्ययंत्र, और वाणीकी के लिए तत्पर बनाया जाता है। इस शिक्षा कार्यक्रम में उन्हें चरित्र अभिनय, उच्चारण, अंगिका और भावात्मकता में कुशलता प्राप्त करने का अवसर मिलता है।

तेरुकुलु का उद्देश्य मनोरंजन और शिक्षा को मिश्रित करना है। इसे सामान्यतः अवकाशों और महत्वपूर्ण सामारोहों पर प्रदर्शित किया जाता है, जैसे कि विवाह समारोह, महोत्सव, और धार्मिक त्योहार। इन अवसरों पर तेरुकुलु का प्रदर्शन महत्वपूर्ण होता है, जिससे समुदाय के सदस्यों को धार्मिक और मनोरंजनिक अनुभव प्राप्त होता है।

तेरुकुलु के प्रदर्शन में कलाकारों की पहचानी जाती है, जिनमें उनकी कौशल, संगठनशीलता और अभिनय क्षमता को मान्यता दी जाती है। इन कलाकारों को बड़ी मान्यता और सम्मान प्राप्त होता है और उन्हें समुदाय का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

इस प्रकार, तेरुकुलु एक प्रमुख पौराणिक नाट्य है जो तमिलनाडु, भारत में प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य मनोरंजन और शिक्षा को मिश्रित करना है और यह तमिलनाडु की सांस्कृतिक और कला परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। तेरुकुलु का प्रदर्शन ग्रामीण क्षेत्रों में होता है और इसे प्रमुखतः अवकाशों और महत्वपूर्ण सामारोहों पर प्रदर्शित किया जाता है। इसका महत्वपूर्ण स्थान तमिलनाडु की साहित्यिक और कला परंपराओं में है, और इसे प्रामाणिक तमिलनाडु की परंपरागत प्रस्तुतियों का हिस्सा माना जाता है। इसके माध्यम से, तमिलनाडु की सांस्कृतिक और पौराणिक कथाएं जनमानस को प्रस्तुत की जाती हैं और जनमानस को मनोरंजन और शिक्षा का अनुभव प्रदान किया जाता है।

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